बहुत उम्मीद से था मैने फ़ोन उठाया ।
बहुत बैरूखी से था उन्होने दिल दुखाया ॥
ऊपर से किया ये हसी-सित्तम ।
कह दिया सो जाओ,करते हैं बात कल हम ॥
संजीदिगी का है ये कैसा आसूल ।
दिल दुःखा कर किसी का , करो भी ना कबूल ॥
किसीने जतलाकर इतना अपनापन ,जज़्बात सारे जगा दिए ।
की जो हमने शरारत ,तो इलज़ाम हमीं पर लगा दिए ॥
हसी है , दिलनशी है ,चाहना उसको खुदखुशी है ।
अपना है या बचपना है,साथ उसका खूबसूरत सपना है ॥
आती हैं दिल जीतने की उसको सारी अदाएं ।
चाहाकर भी कोई कैसे ,नशे से उसके खुद को बचाए ॥
चंचला है, मनचला है ,दिल की टेढ़ी- मेड़ी राहों में , कभी उलझा, कभी संभला है ।
चाहती हूं नफरत करुं उससे ,पर फिर भी यादों से उसी की ही दिल उमड़ा पड़ा है ॥
बहुत बैरूखी से था उन्होने दिल दुखाया ॥
ऊपर से किया ये हसी-सित्तम ।
कह दिया सो जाओ,करते हैं बात कल हम ॥
संजीदिगी का है ये कैसा आसूल ।
दिल दुःखा कर किसी का , करो भी ना कबूल ॥
किसीने जतलाकर इतना अपनापन ,जज़्बात सारे जगा दिए ।
की जो हमने शरारत ,तो इलज़ाम हमीं पर लगा दिए ॥
हसी है , दिलनशी है ,चाहना उसको खुदखुशी है ।
अपना है या बचपना है,साथ उसका खूबसूरत सपना है ॥
आती हैं दिल जीतने की उसको सारी अदाएं ।
चाहाकर भी कोई कैसे ,नशे से उसके खुद को बचाए ॥
चंचला है, मनचला है ,दिल की टेढ़ी- मेड़ी राहों में , कभी उलझा, कभी संभला है ।
चाहती हूं नफरत करुं उससे ,पर फिर भी यादों से उसी की ही दिल उमड़ा पड़ा है ॥