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Monday, April 8, 2019

दोस्त

फेसबुक की दुनिया बहुत असीम होती हे, तेरे मेरे सुख दुःख का पिटारा होती है
रोज़ सुबह दूकान लगती है रोज़ सुबह दुकान लगती है लाइक और कमेंट के पैमाने पर गम और खुशीआं तेरी मेरी बिकती हैं
फेसबुक की दुनिया बहुत असीम होती हे, तेरी मेरी खुशीआं का ढिंढोरा होती है

देखकर दूसरों की जिंदिगी के उजाले, न जाने कितनी रातें मैं नहीं सोई
मालूम है ये संकुचित मानसिकता की निशानी होती है

ऐसा नहीं की मैंने कोशिश नहीं की दुनिया संग मुस्कराने की, ऐसा नहीं की मैंने कोशिश नहीं की दुनिया संग मुस्कराने की, पर ऐसी मुस्कराहट बेमानी होती है

मन के अंधेरों को कैसे रोशन करुं, ढूंढा ये चिराग मैंने बहुत सोशल मीडिया के गलियारों  में
अँधियारा सिर्फ गहराता ही गया अँधियारा सिर्फ गहराता ही गया, जितना झाँका मैंने इन दरारों में
 इतनी सस्ती नहीं खुशियां इतनी सस्ती नहीं खुशियां जो मिल जाएं हमे गैस के गुबारों में

हर एक फेसबुक पोस्ट को खंगाला है ट्विटर और इंस्टाग्राम पर भी try मारा है
पर मिला नहीं वो सकून, जो मिला जब किसी दोस्त ने ठहाका ज़ोर से मारा है

व्यस्तता नहीं इतनी की दोस्तों ने मिलना बंद कर दिया, फेसबुक और ट्विटर पर संसार अलग बस गया
इन खोखले जस्बातों से मन और नहीं मानता, इन बेहिसाब बेमतलब की बातों से दिल और नहीं टहलता 

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