सब अख़बारों में यही समाचार है, पूरी दुनिया को हुआ बुखार है।
अनजाना-अनदेखा कोई खतरा है, लगता है खुदा ने इंसानी क़ाबलियत को पर्खा है॥
ऑस्ट्रेलिया - ऐमज़ॉन के जंगल खाक हो गए,
कितने बे ज़ुबान जानवर ज़िंदा जल गए,
हम थोड़े ही क़सूरवार हैं, कहकर सब हाथ झटक गए।
खेत खोदकर कल-कारखाने लग गए,
बेक़सूर किसान सूली पर चढ़ गए।
रातों -रात तेल के कुएं ख़ुद गए,
धरती कम पड़ी तो समुद्र पर आलीशान मक़बरे बन गए।
बर्फ़ पिघल कर जल हो गई,
कभी सूखा, कहीं ज़लज़ले बढ़ गए।
पृथ्वी पूरी नाश हो गई,
प्रदूषण से पर्यावरण में फाँक हो गईं,
दरकिनार कर सब दावे, तुम आगे बढ़ गए ।
सब सब जानते थे , फिर भी मूक खड़े थे,
पूछा कसूर किसका है, सब आँखें मूँदे अपनी-अपनी गली को मुड़ गए।
देखो नतीजा अपनी बेवकूफी का,
चित्र कितनों के बेवक्त ही दीवारों पर टंग गए।
अब क्यूँ चिल्लाते हो, आँसू घड़याली बहाते हो ,
क़ुदरत का भी अपना क़ानून है, प्रकृति जानती है तुम कितने मासूम हो ।
बहुत हो चुकी तुम्हारी मनमानी है, इसलिए नहीं मिला तुमको दर्जा इंसानी है ।
सब अखबारों में यही हाहाकार है, पूरी दुनिया कोरोना के सामने लाचार है।
अनजाना-अनदेखा कोई खतरा है, लगता है खुदा ने इंसानी क़ाबलियत को पर्खा है॥