आया जब समझ में, ये संसार भ्रम है, सब मोह-माया झल-कपट की जंग है ।
आई जब सद्बुद्धि जीवन में, तब लगा समय रह गया कुछ कम है ॥
थोड़ा बहुत जो सीखा जीवन में, सोचा औलाद को सीखा जाऊं।
उम्र के इस पड़ाव पर ही सही, कदम तो एक सही उठाऊं ॥
कीचड़ जो फैलाया जीवन में, इतने से कहां सिमटेगा ।
इसके लिए तो, हरिद्वार का ही चक्कर लगेगा ॥
गंगा भी अब कहाँ रह गई स्वच्छ है, तेरे - मेरे पापों से हो गई छिन-विच्छिन है ।
अपने कर्मों का हिसाब तो देना पड़ेगा, जो बोया जीवन भर, काटना तो पड़ेगा ॥
बीज जो बोए थे जाने-अनजाने में नफरत के, आज पक रहे हैं ।
रिश्ते जो संजोए जिंदगी भर, तार -तार हो कर बिखर रहे हैं ॥
ये कहानी नहीं सिर्फ मेरे जीवन की, सबके ही जीवन का अक्स है ।
जो जी गया जीवन, वो तो निकल लिया, संभल जा खैर, तेरे पास तो अभी भी वक़्त है ॥
आई जब सद्बुद्धि जीवन में, तब लगा समय रह गया कुछ कम है ॥
थोड़ा बहुत जो सीखा जीवन में, सोचा औलाद को सीखा जाऊं।
उम्र के इस पड़ाव पर ही सही, कदम तो एक सही उठाऊं ॥
कीचड़ जो फैलाया जीवन में, इतने से कहां सिमटेगा ।
इसके लिए तो, हरिद्वार का ही चक्कर लगेगा ॥
गंगा भी अब कहाँ रह गई स्वच्छ है, तेरे - मेरे पापों से हो गई छिन-विच्छिन है ।
अपने कर्मों का हिसाब तो देना पड़ेगा, जो बोया जीवन भर, काटना तो पड़ेगा ॥
बीज जो बोए थे जाने-अनजाने में नफरत के, आज पक रहे हैं ।
रिश्ते जो संजोए जिंदगी भर, तार -तार हो कर बिखर रहे हैं ॥
ये कहानी नहीं सिर्फ मेरे जीवन की, सबके ही जीवन का अक्स है ।
जो जी गया जीवन, वो तो निकल लिया, संभल जा खैर, तेरे पास तो अभी भी वक़्त है ॥
No comments:
Post a Comment
Your comments are an encouragement to keep this blog going, so do leave a comment. We greatly appreciate your comments.