Facebook की दुनिया बहुत छोटी होती है, तेरी मेरी खुशियों का ढिंढोरा होती है ।
देखकर दूसरों की जिंदिगी में उजाले, ना जाने कितनी रातें मुझे नींद नहीं आई ।
मालूम है ऐसी सोच संकुचित मानसिकता की निशानी होती है ॥
मैंने भी कोशिश की, दुनिया संग मुस्कराने की ।
छुपा कर सब दुःख-दर्द सीने में, खुशिओं का मुखौटा लगाकर जीने की ।
पर क्या फायदा ऐसे बेमानी मुस्कराने में, झूठी मुस्कान हमेशा फीकी होती है ।
Facebook की दुनिया बहुत सीमित होती है, तेरी मेरी खुशियों का ढिंढोरा होती है ॥
मन के अंधेरों को कैसे रोशन करुं, ढूंढा बहुत ये चिराग मैंने, सोशल मीडिया के गलियारों में ।
मन के अंधेरों को कैसे रोशन करुं, ढूंढा बहुत ये चिराग मैंने, सोशल मीडिया के गलियारों में ।
अँधेरा सिर्फ गहराता ही गया, अँधेरा सिर्फ गहराता ही गया, जितनी चली मैं इन चौराहों में ।
इतनी सस्ती नहीं खुशियां, इतनी सस्ती नहीं खुशियां, जो मिल जाए हमें गैस के गुबारों में ॥
Facebook की दुनिया बहुत छोटी होती है, तेरी मेरी खुशियों का ढिंढोरा होती है ॥
देखकर दूसरों की जिंदिगी में उजाले, ना जाने कितनी रातें मुझे नींद नहीं आई ।
मालूम है ऐसी सोच संकुचित मानसिकता की निशानी होती है ॥
मैंने भी कोशिश की, दुनिया संग मुस्कराने की ।
छुपा कर सब दुःख-दर्द सीने में, खुशिओं का मुखौटा लगाकर जीने की ।
पर क्या फायदा ऐसे बेमानी मुस्कराने में, झूठी मुस्कान हमेशा फीकी होती है ।
Facebook की दुनिया बहुत सीमित होती है, तेरी मेरी खुशियों का ढिंढोरा होती है ॥
मन के अंधेरों को कैसे रोशन करुं, ढूंढा बहुत ये चिराग मैंने, सोशल मीडिया के गलियारों में ।
मन के अंधेरों को कैसे रोशन करुं, ढूंढा बहुत ये चिराग मैंने, सोशल मीडिया के गलियारों में ।
अँधेरा सिर्फ गहराता ही गया, अँधेरा सिर्फ गहराता ही गया, जितनी चली मैं इन चौराहों में ।
इतनी सस्ती नहीं खुशियां, इतनी सस्ती नहीं खुशियां, जो मिल जाए हमें गैस के गुबारों में ॥
Facebook की दुनिया बहुत छोटी होती है, तेरी मेरी खुशियों का ढिंढोरा होती है ॥
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