पहाड़ों की भी अपनी भाषा होती है, जितनी ऊंचाई, उतनी ही गहराई होती है ।
धीरे-धीरे पहाड़ बात करने लगते हैं, एक अनजानी डोर से बांधें रखते हैं ॥
पहाड़ों की गोद से झीलें झलकती हैं ।
पानी की बूँदें आंखों में चमकती हैं ॥
इनका ठंडा शीतल जल आत्मा तृपत कर देता है ।
थके हुए राही को मंज़िल पर बढ़ने की गति देता है॥
तन्हा कभी मह्सूस नहीं होता, पहाड़ों की ख़ामोशी में एक गूंज होती है ।
मानो कोई बुला राह हो नाम मेरा, तू क्यूं भटक रही है, तू किसे ढूंढ़ती है ॥
हर मुड़ती राह एक पहेली है, ये खूबसूरत वादियां ही अब मेरी सहेली हैं ।
कभी बादलों की घटा जमी पर उतर आती है ।
कभी सफ़ेद बर्फ की चादर अठखेलियों करती है।
किसे पता था प्रकृति भी इस कदर हंसती है॥
जीवन जब थक हार कर बैठ जाता है, अच्छे बुरे ख़यालों का ताना-बाना बुनता है ।
हवा का झोंका झकझोर देता है, सब थकान उदासी को उधेड़ देता है ॥
जब दिवाकर दस्तक देता है दूर कहीं ऊँची चोटी पर, उजालों की किरणों से मन का सब अंधकार छंट जाता है।
किसे पता था पहाड़ों से लिपट कर घर-परिवार मिलता है ॥
पहाड़ों की भी अपनी भाषा होती है, एक अनजानी डोर से बांधें होती है ॥
धीरे-धीरे पहाड़ बात करने लगते हैं, एक अनजानी डोर से बांधें रखते हैं ॥
पहाड़ों की गोद से झीलें झलकती हैं ।
पानी की बूँदें आंखों में चमकती हैं ॥
इनका ठंडा शीतल जल आत्मा तृपत कर देता है ।
थके हुए राही को मंज़िल पर बढ़ने की गति देता है॥
तन्हा कभी मह्सूस नहीं होता, पहाड़ों की ख़ामोशी में एक गूंज होती है ।
मानो कोई बुला राह हो नाम मेरा, तू क्यूं भटक रही है, तू किसे ढूंढ़ती है ॥
हर मुड़ती राह एक पहेली है, ये खूबसूरत वादियां ही अब मेरी सहेली हैं ।
कभी बादलों की घटा जमी पर उतर आती है ।
कभी सफ़ेद बर्फ की चादर अठखेलियों करती है।
किसे पता था प्रकृति भी इस कदर हंसती है॥
जीवन जब थक हार कर बैठ जाता है, अच्छे बुरे ख़यालों का ताना-बाना बुनता है ।
हवा का झोंका झकझोर देता है, सब थकान उदासी को उधेड़ देता है ॥
जब दिवाकर दस्तक देता है दूर कहीं ऊँची चोटी पर, उजालों की किरणों से मन का सब अंधकार छंट जाता है।
किसे पता था पहाड़ों से लिपट कर घर-परिवार मिलता है ॥
पहाड़ों की भी अपनी भाषा होती है, एक अनजानी डोर से बांधें होती है ॥
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